ग़ज़ल :- तुम्हारी बात का जिस पर नशा है । उठाने को तिरा घूंघट खड़ा है ।।१ नज़र भर देख भी ले जो तुम्हें अब । कहाँ फिर होश में रहता खड़ा है ।।२ तुम्हें जो छू रही है बे-इजाजत । वही मगरूर अब देखो हवा है ।।३ किसी के जो बुलाने से न आता । वही चंदा तुम्हें अब देखता है ।।४ कभी उसको गले से भी लगा ले । तुम्हारे प्यार में जो बावला है ।।५ इबादत में उसी की आज बैठा । जिसे हमने यहाँ माना खुदा है ।।६ बहुत बिंदास हो कर के चले थे । कि उसकी जुल्फ़ का साया घना है ।।७ वही है रूप की रानी जहाँ में । हमारा दिल सुनो जिस पर फ़िदा है ।। ८ उसी की ही अदाओं का असर ये । प्रखर जो आज दीवाना हुआ है ।।९ २६/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- तुम्हारी बात का जिस पर नशा है । उठाने को तिरा घूंघट खड़ा है ।।१