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पत्रकारिता  सिसक  रही  है, अंधियारा  मुंह खोल रहा

पत्रकारिता  सिसक  रही  है, अंधियारा  मुंह खोल रहा है, 

सच  अब  गूंगा  बन  बैठा  है,  झूठ  मंच पर बोल रहा है। 

वो जिसके ईमान की सबको कसमें खिला रही थी दुनिया, 

उसको  देखा  नोटों  की  गड्डी  से  ख़ुद  को  तौल  रहा है।

©Deepak Ghazipuri
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