J- कल मिल पाओगी कुछ वैचारिक सीपीयाँ अब भी सन्दूक मे हैं तुम्हें अब लौटानी है|| मेरी पुलकन मे अब भी तुम्ही हो मेरी सोच की दीर्घा मे बस एक ही स्थान था और वो तुम्हारी हँसी आस्था की दीवारों को पुलकित करती रहती हैं पर , एक सीमा रेखा उन्होने खींची जो हमारे होने के मायने हैं मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च सभी तो हैं वही और हम अलग हैं क्यों न सीपियों को वापस कर ले बस एहसास काफी है हमे हममे होने के लिए क्यों हैं न ,, कल मिलना जरूर गरिमामय प्रेम