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J- कल मिल पाओगी कुछ वैचारिक सीपीयाँ अब भी सन्दूक

J- कल मिल पाओगी 
कुछ वैचारिक सीपीयाँ
अब भी सन्दूक मे हैं 
तुम्हें अब लौटानी है||

मेरी पुलकन मे अब भी 
तुम्ही हो 
मेरी सोच की दीर्घा मे 
बस एक ही स्थान था 
और वो तुम्हारी हँसी
आस्था की दीवारों को 
पुलकित करती रहती हैं  

पर , एक सीमा रेखा 
उन्होने खींची 
जो हमारे होने के मायने हैं 
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च
सभी तो हैं वही 

और हम अलग हैं 

क्यों न सीपियों 
को वापस कर ले 
बस एहसास काफी है 
हमे हममे होने के लिए 

क्यों हैं न ,, कल मिलना जरूर गरिमामय प्रेम
J- कल मिल पाओगी 
कुछ वैचारिक सीपीयाँ
अब भी सन्दूक मे हैं 
तुम्हें अब लौटानी है||

मेरी पुलकन मे अब भी 
तुम्ही हो 
मेरी सोच की दीर्घा मे 
बस एक ही स्थान था 
और वो तुम्हारी हँसी
आस्था की दीवारों को 
पुलकित करती रहती हैं  

पर , एक सीमा रेखा 
उन्होने खींची 
जो हमारे होने के मायने हैं 
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च
सभी तो हैं वही 

और हम अलग हैं 

क्यों न सीपियों 
को वापस कर ले 
बस एहसास काफी है 
हमे हममे होने के लिए 

क्यों हैं न ,, कल मिलना जरूर गरिमामय प्रेम

गरिमामय प्रेम #poem