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वृक्ष एक लकड़हारा लेकर आया, कुल्हाड़ी अपने हाथ में

वृक्ष

एक लकड़हारा लेकर आया,
कुल्हाड़ी अपने हाथ में।
एक सदस्य था और भी आया,
जो था उसके साथ में।
हरियाली से ये बाग़ भरा था,
जो था खेत खलिहान में।
उनका ध्यान अब हम पर था,
हम भी थे तब मैदान में।
घबराए सकुचाए सोच रहे थे,
क्या होगा अपने साथ में।
वहाँ पर और भी वृक्ष खड़े थे,
जो सूखे थे वहीं बाग़ में।
पर आ रहे थे वो मूर्ख यहीं पर,
थे वो अब अपनी धाक में।
उठाई कुल्हाड़ी उसने मुझ पर,
मैं बोला अब अवसाद में।
मुझको छोड़ो उसको काटो,
वो सूखा खड़ा है बाग़ में।
हम हरे भरे हैं हमें मत काटो,
आओगे वरना संताप में।
वर्षा न होगी अब फिर कभी,
तब आओगे अकाल में।
भूख भी थमेगी नहीं कभी,
फँसोगे तुम जनजाल में।
अभी वक्त है संभलजा वरना,
पहुँचोगे तुम यमधाम में।
ऐसा न आगे तुम कभी करना,
संकट बनोगे संसार में।
ईश्वर भी खफा होंगे तुमसे,
जो रहे अपनी धाक में।
तब न रोना ग़लती हुई तुमसे,
अभी हो हमारी ताक में।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
  #वृक्ष #nojotohindi

वृक्ष

एक लकड़हारा लेकर आया,
कुल्हाड़ी अपने हाथ में।
एक सदस्य था और भी आया,
जो था उसके साथ में।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

New Creator

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