गली के नुक्कड़ से, चौराहे का चौथा मकान, चाहरदीवारी से घिरा, खिड़की इक, जो झाँकती है, जिंदगी की तलाश में, बेतहाशा दौड़ती सड़कों पर, तन्हाई में, दहलीज पर, दरवाजा शीशम की लकड़ी का मकान के लोगों का, है विश्वास बनकर, अरसे से खड़ा, मकान में है, तीन चारपाई,चार कुर्सियाँ और एक मेज, बिस्तर हैं चादरों संग, तकिए हैं गिलाफ़ ओढ़े सिरहानों पर मौन, पूर्ण रचना अनुशीर्षक मे है.. #मेरा_मकान... गली के नुक्कड़ से, चौराहे का चौथा मकान, चाहरदीवारी से घिरा,