क़ैद- ए -उल्फ़त से रिहा होना नहीं,, हो के मुज़रिम अब ख़ुदा होना नहीं।।1 क्या मनाऊं जश्न-ए-आजादी क़फ़स,, चार दीवारी ज़ुदा होना नहीं।।2 छू रही है रूह हर लम्हा बदन,, शोखियों का ज़ुर्म क्या होना नहीं।।3 ऐ ग़ज़ल तू है हसीनों में हसीं,, बे-हुदा कह बे-वफ़ा होना नहीं।।4 ©Shree Shayar श्रीधर श्री #Sky