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क़ैद- ए -उल्फ़त से रिहा होना नहीं,, हो के मुज़

क़ैद- ए -उल्फ़त  से  रिहा  होना नहीं,,

हो के मुज़रिम अब ख़ुदा होना नहीं।।1

क्या मनाऊं जश्न-ए-आजादी क़फ़स,,

चार   दीवारी      ज़ुदा   होना  नहीं।।2

छू  रही    है  रूह   हर   लम्हा  बदन,,

शोखियों  का  ज़ुर्म क्या  होना नहीं।।3

ऐ  ग़ज़ल  तू   है  हसीनों   में   हसीं,,

बे-हुदा   कह  बे-वफ़ा   होना  नहीं।।4

©Shree Shayar श्रीधर श्री

#Sky
क़ैद- ए -उल्फ़त  से  रिहा  होना नहीं,,

हो के मुज़रिम अब ख़ुदा होना नहीं।।1

क्या मनाऊं जश्न-ए-आजादी क़फ़स,,

चार   दीवारी      ज़ुदा   होना  नहीं।।2

छू  रही    है  रूह   हर   लम्हा  बदन,,

शोखियों  का  ज़ुर्म क्या  होना नहीं।।3

ऐ  ग़ज़ल  तू   है  हसीनों   में   हसीं,,

बे-हुदा   कह  बे-वफ़ा   होना  नहीं।।4

©Shree Shayar श्रीधर श्री

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pranaydevtare3297

Shree Shayar

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