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ग़ज़ल बन सँवर कर निकलते रात में क्यों हैं । वो खुशी

ग़ज़ल
बन सँवर कर निकलते रात में क्यों हैं ।
वो खुशी से उछलते रात में क्यों हैं ।।१

चाँद ही अब अगर रोशन जहाँ करता ।
तो चराग ये जलते रात में क्यों हैं ।।२

इश्क़ मेरा नहीं तो और क्या उनमें 
इस तरह वो महकते रात में क्यों हैं ।।३

था यकीं गर उन्हें मुझपर न आयेंगे ।
तो बताएं सँवरते रात में क्यों है ।।४

इश्क़ जिनको हुआ है हुस्न वालो से ।
दीद को वो तरशते रात में क्यों है ।५

प्यार अपना जताते जो भरी महफ़िल ।
बीवियों से बिगड़ते रात में क्यों हैं ।।६

आदमी वो बड़े भोले नज़र आते ।
 सिर जमीं पे रगड़ते रात में क्यों हैं ।।७

जब खता ही नहीं उसने किया अब तक ।
नाक फिर वो रगड़ते रात में क्यों हैं ।।८

देख जिनको मचलते थे प्रखर अब तक ।
अब उन्हीं से उलझते रात में क्यों हैं ।।९

०५/०२/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल


बन सँवर कर निकलते रात में क्यों हैं ।

वो खुशी से उछलते रात में क्यों हैं ।।१
ग़ज़ल
बन सँवर कर निकलते रात में क्यों हैं ।
वो खुशी से उछलते रात में क्यों हैं ।।१

चाँद ही अब अगर रोशन जहाँ करता ।
तो चराग ये जलते रात में क्यों हैं ।।२

इश्क़ मेरा नहीं तो और क्या उनमें 
इस तरह वो महकते रात में क्यों हैं ।।३

था यकीं गर उन्हें मुझपर न आयेंगे ।
तो बताएं सँवरते रात में क्यों है ।।४

इश्क़ जिनको हुआ है हुस्न वालो से ।
दीद को वो तरशते रात में क्यों है ।५

प्यार अपना जताते जो भरी महफ़िल ।
बीवियों से बिगड़ते रात में क्यों हैं ।।६

आदमी वो बड़े भोले नज़र आते ।
 सिर जमीं पे रगड़ते रात में क्यों हैं ।।७

जब खता ही नहीं उसने किया अब तक ।
नाक फिर वो रगड़ते रात में क्यों हैं ।।८

देख जिनको मचलते थे प्रखर अब तक ।
अब उन्हीं से उलझते रात में क्यों हैं ।।९

०५/०२/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल


बन सँवर कर निकलते रात में क्यों हैं ।

वो खुशी से उछलते रात में क्यों हैं ।।१

ग़ज़ल बन सँवर कर निकलते रात में क्यों हैं । वो खुशी से उछलते रात में क्यों हैं ।।१ #शायरी