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घिस घिस के माथा पत्थर पर मैंने एक तीखी धार बनाई,,

घिस घिस के माथा 
पत्थर पर
मैंने एक तीखी धार बनाई,,
ना रुकी कभी
ना थकी कभी
उम्मीदें भी हज़ार लगाई,,
कभी चुलबुली बनी
कभी बनी मैं सौम्य
कभी अपनी छवि होशियार बनाई,,
बिगड़ी चीज़ें 
तो डरी नहीं
हिम्मत एक नहीं, सौ बार दिखाई,,
पर अब ,,
डर लगता है मुझको
अपने हर बदलाव से 
बस इसीलिए अपने चारों ओर
मैंने एक मोटी दीवार बनाई।।।।

©Pratiksha Soni
  मैंने एक दीवार बनाई ।।।
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