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// नशे ने कुछ ऐसा सताया है // नशे ने कुछ ऐसा सताय

// नशे ने कुछ ऐसा सताया है //

नशे ने कुछ ऐसा सताया है।
हर एक युवा को,
अपने जाल में फँंसाया है। 
नशे ने कुछ ऐसा बहकाया है।
इंसान को अपना आदि बनाया है।
अपना लक्ष्य,अपना देश,
अपना कर्तव्य सब भूल आया है।
घर-परिवार,
बीवी-बच्चे सब भूल आया है।
रात को पीना,पीकर शोर मचाना,
बीवी को डांँटना,बच्चों को मारना,
नशे ने क्या-क्या करवाया है।
अपनी इज्जत,
अपनी शोहरत,सब गवाया है।
नशे ने कुछ यूंँ सताया है ।
हर युवा को अपने जाल में फँंसाया है।
एक उज्जवल भविष्य को,
अंँधकार में डूबाया है ।
नशे ने यह क्या-क्या करवाया है।
दोस्तों ने भी,
क्या खूब मजाक उड़ाया है।
दिल अंदर से टूट रहा था,
आँंख से आँंसू बह रहा था, 
खाने को घर में,
एक दाना भी ना था।
बच्चों का स्कूल भी छूट रहा था,
फीस भरने को पैसे भी,
नाते कर्ज से लेकर चल रहा था,
कर्ज पर कर्ज हो रहा था,
दर्द से हो गया था गहरा नाता,
नशे ने था ऐसा डाला डेरा।
नहीं मिल रहा था इसका कोई सवेरा।
नशे ने कुछ ऐसा सताया है।
हर युवा को अपने जाल में फँंसाया है।

शबीहा कौशर 'सीमा'

©Shivkumar
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