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वो मुझे जीवन का ज्ञान बांट रहा था, मेरे जीवन की त्

वो मुझे जीवन का ज्ञान बांट रहा था,
मेरे जीवन की त्रुटियां दिखा रहा था।
है गलतियां मुझमें, एहसास हुआ मुझे,
है गलतियां मुझमें, एहसास हुआ मुझे,
परिपक्वता से मैं परिवर्तन ला रहा था।
गलतियों का स्वरूप मनुष्य हूं मैं,
गलतियों का स्वरूप मनुष्य  हूं मैं,
किंतु बेहतर खुद को बना रहा था।
मेरी गलतियों का बोध कराया जिसने,
वो महापुरुष भी उच्चतम ना थे,
जीवन में उनका भी अवगुण उभर रहा था।
खुद के समय शायद सुनने में दिक्कत थी,
एक धुन गुनगुनाते हुए चल दिए राह पर अपने,
वो ज्ञानी मुझे ज्यादा मूर्ख दिख रहा था।
   - रूदेब गायेन

©Rudeb Gayen
  ज्ञानी का ज्ञान
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Rudeb Gayen

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