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में गूंज हुं सहर की और वक्त भी हुं तेरा । जो भीतर

में गूंज हुं सहर की और वक्त भी हुं तेरा ।
जो भीतर छीपा है तेरे वो एहंकार नहीं हुं।
मेरी बदौलत हर रोज आना जाना रहता है
इधर।
में खुशी और गमों का महोताज नहीं हुं ।

,,,ईश्वर,,,

©Vickram
  ईश्वर########
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Vickram

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ईश्वर######## #शायरी

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