कुछ अधूरे सपनों का बोझ उठाए जा रही हूँ, ख़ामोश हूँ पर हज़ारों कहानियाँ कहे जा रही हूँ। गुमनाम से किसी डरावने साए की तरह, घनघोर बियाबान में धीरे-धीरे सिमटे जा रही हूँ। तमाशबीन और दर्शक है लोग यहाँ के, थोड़ा सा मैं भी तमाशा किए जा रही हूँ । दाम लगता है आँसुओं का इस जहाँ में, धूल से बनी "अनाम" अब धूल होती जा रही हूँ। नमस्ते लेखकों❤ तैयार हो हमारी "काव्योगिता" के पहले चरण के लिए?! हमारा पहला पड़ाव एक अनुक्रमिक कविता है। इस कविता का प्रारूप (format ) कुछ इस प्रकार रहेगा: