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कुछ अधूरे सपनों का बोझ उठाए जा रही हूँ, ख़ामोश हू

कुछ अधूरे सपनों का बोझ उठाए जा रही हूँ, 
ख़ामोश हूँ पर हज़ारों कहानियाँ कहे जा रही हूँ।

गुमनाम  से किसी डरावने साए की तरह,
घनघोर बियाबान में धीरे-धीरे सिमटे जा रही हूँ।

तमाशबीन और दर्शक है लोग यहाँ के,
थोड़ा सा मैं भी तमाशा किए जा रही हूँ ।

दाम लगता है आँसुओं का इस जहाँ में, 
धूल से बनी "अनाम" अब धूल होती जा रही हूँ। नमस्ते लेखकों❤

तैयार हो हमारी "काव्योगिता" के पहले चरण के लिए?! 

हमारा पहला पड़ाव एक अनुक्रमिक कविता है। 

इस कविता का प्रारूप (format ) कुछ इस प्रकार रहेगा:
कुछ अधूरे सपनों का बोझ उठाए जा रही हूँ, 
ख़ामोश हूँ पर हज़ारों कहानियाँ कहे जा रही हूँ।

गुमनाम  से किसी डरावने साए की तरह,
घनघोर बियाबान में धीरे-धीरे सिमटे जा रही हूँ।

तमाशबीन और दर्शक है लोग यहाँ के,
थोड़ा सा मैं भी तमाशा किए जा रही हूँ ।

दाम लगता है आँसुओं का इस जहाँ में, 
धूल से बनी "अनाम" अब धूल होती जा रही हूँ। नमस्ते लेखकों❤

तैयार हो हमारी "काव्योगिता" के पहले चरण के लिए?! 

हमारा पहला पड़ाव एक अनुक्रमिक कविता है। 

इस कविता का प्रारूप (format ) कुछ इस प्रकार रहेगा:

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