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जिंदगी रमजान के रोज़े-सी कट रही है न जाने अब और क

जिंदगी रमजान के रोज़े-सी कट रही है 
न जाने अब और कितनी दूर इफ़्तारी है

तुमने तुम्हारा पैसा दिया, हमने हमारा पेशा दिया 
पैसा हाथ का मेल है, पेशा हाथ की  कलाकारी हैं 

हक जताने को तो हम भी कह सकते हैं 
कि ये इमारतें,  ये सड़कें सब हमारी हैं

मगर हमें हमारे जीवन का  दर्शन  सिखाता है कि
खुद के लिए जीना गद्दारी, औरों के लिए जीना खुद्दारी है

                                            -गौरव कमलामणी #hindipoetry #hindi #gazal #life #politics #constitution #kavita #politics
जिंदगी रमजान के रोज़े-सी कट रही है 
न जाने अब और कितनी दूर इफ़्तारी है

तुमने तुम्हारा पैसा दिया, हमने हमारा पेशा दिया 
पैसा हाथ का मेल है, पेशा हाथ की  कलाकारी हैं 

हक जताने को तो हम भी कह सकते हैं 
कि ये इमारतें,  ये सड़कें सब हमारी हैं

मगर हमें हमारे जीवन का  दर्शन  सिखाता है कि
खुद के लिए जीना गद्दारी, औरों के लिए जीना खुद्दारी है

                                            -गौरव कमलामणी #hindipoetry #hindi #gazal #life #politics #constitution #kavita #politics