Nojoto: Largest Storytelling Platform

अब तुम्हारी दी हुई...हर पीर आधी रह गई रफ़्ता रफ़्ता

अब तुम्हारी दी हुई...हर पीर आधी रह गई
रफ़्ता रफ़्ता दर्द की तासीर... आधी रह गई

कोशिशे पैहम से मुमकिन है.. आज़ादी भी मिले
घिसते घिसते ज़ुल्म की..ज़ंजीर आधी रह गई

दर्ज़ है तारीख़ में..गुज़रे दिनों की दास्तां
वक़्त ने मोहलत न दी..तदबीर आधी रह गई

उम्र ने इतनी लकीरें.. चेहरे पे खेंच दी अब
सच तो ये है हुस्न की..जागीर आधी रह गई

ज़िंदगी मे रंग खुशियों के.. बहुत बिखरे मिले
ग़म बिना लेकिन मेरी..तस्वीर आधी रह गई

पैहम= लगातार/निरंतर

©Kumar Dinesh
  #lunar