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कैसे पढूं प्रियतम की पाती,मुझसे पढ़ी ना जाय हे, उध

कैसे पढूं प्रियतम की पाती,मुझसे पढ़ी ना जाय हे, उधो!।
मुझसे पढ़ी ना जाय, हे उधो! मुझसे पढ़ी ना जाय।
पाती देख विरह बढ़ जाए,दिल तिल तिल जल जाय।
हे उधो! मुझसे पढ़ी ना जाय।
ना सुध तन मन की रही अब तो,
छोड़ गए हमें जब से मरण को।
प्रेम संदेश पढूं मैं कैसे, अंखियां भरी भरी जाय।
हे उधो मुझसे पढ़ी ना जाय।

©नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
  # मुझसे पढ़ी ना जाय हे उधो।

# मुझसे पढ़ी ना जाय हे उधो। #शायरी

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