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ग़ज़ल:- लहूँ पीते हैं नफ़रत करने वाले । लुटाते प्यार

ग़ज़ल:-

लहूँ पीते हैं नफ़रत करने वाले ।
लुटाते प्यार चाहत करने वाले ।।

जुबां जिनकी नहीं मीठी यहाँ पे ।
करें वो बात आहत करने वाले ।।

तलाशो अब जहाँ में दीप लेकर ।
कई होगें शराफ़त करने वाले ।।

बहुत आसान उनको खोजना है ।
यहाँ जो हैं मुसीबत करने वाले ।।

गिने ही लोग हैं संसार में अब ।
बेटियों की हिफ़ाज़त करने वाले ।।

सकूँ मिलता नही बिन माँ  तुझे अब ।
चलो माँ की अक़ीदत करने वाले

चला जा छोड़कर बस्ती प्रखर तू ।
यहाँ सब हैं नसीहत करने वाले ।।

२३/०२/२०२४     --   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल:-


लहूँ पीते हैं नफ़रत करने वाले ।

लुटाते प्यार चाहत करने वाले ।।
ग़ज़ल:-

लहूँ पीते हैं नफ़रत करने वाले ।
लुटाते प्यार चाहत करने वाले ।।

जुबां जिनकी नहीं मीठी यहाँ पे ।
करें वो बात आहत करने वाले ।।

तलाशो अब जहाँ में दीप लेकर ।
कई होगें शराफ़त करने वाले ।।

बहुत आसान उनको खोजना है ।
यहाँ जो हैं मुसीबत करने वाले ।।

गिने ही लोग हैं संसार में अब ।
बेटियों की हिफ़ाज़त करने वाले ।।

सकूँ मिलता नही बिन माँ  तुझे अब ।
चलो माँ की अक़ीदत करने वाले

चला जा छोड़कर बस्ती प्रखर तू ।
यहाँ सब हैं नसीहत करने वाले ।।

२३/०२/२०२४     --   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल:-


लहूँ पीते हैं नफ़रत करने वाले ।

लुटाते प्यार चाहत करने वाले ।।

ग़ज़ल:- लहूँ पीते हैं नफ़रत करने वाले । लुटाते प्यार चाहत करने वाले ।। #शायरी