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कई बार लिख के मिटाता रहा हूं, यादों के शमां जलाता

कई बार लिख के मिटाता रहा हूं, यादों के शमां जलाता रहा हूं।
मिटती नहीं यादें जो है पुरानी, बना गीत उनको मैं गाता रहा हूं।
कई बार लिख के मिटाता रहा हूं.............।

जहां पे खड़ा हूं वो सूनी डगर है, 
चला जा रहा हूं न खुद की फिकर है।

मिले चैन थोड़ा सा बस इसकी खातिर ,तन्हाई से मैं मिलता रहा हूं। 
कई बार लिख के मिटाता रहा हूं।

©नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
  # गजल