अब मैं अपनी कविता के पैर छंदों में नहीं बाँधूँग और उन्हें बहने दूँगा विपरीत दिशाओं में जहाँ रूपकों के चेहरे पर मौन हो मैं अब ना उसने कोई जिद करूँगा ना जिरह और काफ़िये की डोर तोड़ कर भटकने दूँगा उनको नीले आकाश के आँगन में जहाँ हर शब्द अर्थहीन है अब मैं अपनी कविता से ना कोई उम्मीद रखूँगा ना आस और तोड़ दूँगा उस से हर रिश्ता जैसे कोई गंजेड़ी हक़ीक़त से तोड़ लेता है और उसे बुनने दूँगा वो विकृत बिंब जिनसे सच्चाई की बू आती है अब मैं अपनी कविता का कोई नाम नहीं रखूँगा और रहने दूँगा उसे अनाम उसकी तरह जिसका मुझे कभी अब नाम नहीं लेना ©Mo k sh K an ~मुक्तक #mokshkan #poem #Nojoto #Freedom #Poet