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अब मैं अपनी कविता के पैर छंदों में नहीं बाँधूँग और

अब मैं अपनी कविता के पैर
छंदों में नहीं बाँधूँग
और उन्हें बहने दूँगा
विपरीत दिशाओं में
जहाँ रूपकों के चेहरे पर मौन हो 

मैं अब ना उसने कोई जिद करूँगा
ना जिरह 
और काफ़िये की डोर तोड़ कर
भटकने दूँगा उनको 
नीले आकाश के आँगन में 
जहाँ हर शब्द अर्थहीन है 

अब मैं अपनी कविता से 
ना कोई उम्मीद रखूँगा
ना आस 
और तोड़ दूँगा उस से हर रिश्ता
जैसे कोई गंजेड़ी हक़ीक़त से तोड़ लेता है 
और उसे बुनने दूँगा 
वो विकृत बिंब 
जिनसे सच्चाई की बू आती है 

अब मैं अपनी कविता का 
कोई नाम नहीं रखूँगा
और रहने दूँगा उसे
अनाम 
उसकी तरह 
जिसका मुझे कभी अब नाम नहीं लेना

©Mo k sh K an ~मुक्तक
#mokshkan 
#poem 
#Nojoto 
#Freedom 
#Poet
अब मैं अपनी कविता के पैर
छंदों में नहीं बाँधूँग
और उन्हें बहने दूँगा
विपरीत दिशाओं में
जहाँ रूपकों के चेहरे पर मौन हो 

मैं अब ना उसने कोई जिद करूँगा
ना जिरह 
और काफ़िये की डोर तोड़ कर
भटकने दूँगा उनको 
नीले आकाश के आँगन में 
जहाँ हर शब्द अर्थहीन है 

अब मैं अपनी कविता से 
ना कोई उम्मीद रखूँगा
ना आस 
और तोड़ दूँगा उस से हर रिश्ता
जैसे कोई गंजेड़ी हक़ीक़त से तोड़ लेता है 
और उसे बुनने दूँगा 
वो विकृत बिंब 
जिनसे सच्चाई की बू आती है 

अब मैं अपनी कविता का 
कोई नाम नहीं रखूँगा
और रहने दूँगा उसे
अनाम 
उसकी तरह 
जिसका मुझे कभी अब नाम नहीं लेना

©Mo k sh K an ~मुक्तक
#mokshkan 
#poem 
#Nojoto 
#Freedom 
#Poet
shonaspeaks4607

Mo k sh K an

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