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कुछ पात्र स्वयं बन जाते हैं तो कुछ पात्र बनाए जाते

कुछ पात्र स्वयं बन जाते हैं तो कुछ पात्र बनाए जाते हैं, 
कुछ मिटकर बनते हैं तो कुछ बनकर मिटाए जाते हैं, 
चलती है पुरवाई जब कोई बन मछली रह जाता है, 
बहता है वारि जब कोई बन विहग उड़ जाता है, 
रुकता है अंबर जब कोई झुककर टेर लगाता है, 
झुकती है जब धरती तो बोझ तले ढह जाता है, 
क्या कहने मानव जीवन के बिन तृण आग लगाता है, 
कोई जलकर राख़ होता है कोई राख़ देख जल जाता है।
 97/365
#yqdidi #yqhindi #yqpoetry #napowrimo #bestyqhindiquotes #जीवनधारा
कुछ पात्र स्वयं बन जाते हैं तो कुछ पात्र बनाए जाते हैं, 
कुछ मिटकर बनते हैं तो कुछ बनकर मिटाए जाते हैं, 
चलती है पुरवाई जब कोई बन मछली रह जाता है, 
बहता है वारि जब कोई बन विहग उड़ जाता है, 
रुकता है अंबर जब कोई झुककर टेर लगाता है, 
झुकती है जब धरती तो बोझ तले ढह जाता है, 
क्या कहने मानव जीवन के बिन तृण आग लगाता है, 
कोई जलकर राख़ होता है कोई राख़ देख जल जाता है।
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