White वो पतझड़ बाद जो आता है मौसम। गई खुशियां कहां लाता है मौसम। नए सब फूल पत्ते फल है निकले नई नजरों को ही भाता है मौसम।। मैं जब चाहूं तुम्हें मैं भूल जाऊं । तुम्हारी याद ले आता है मौसम। यूं दिल के सारे ताले बंद है फिर। भला क्यों लौट कर आता है मौसम । पहाड़ों से है ठोकर खा के आया। मुंडेरों पे बरस जाता है मौसम ।। बुढ़ापे में जवानी याद करके। निगाहों में ठहर जाता है मौसम ज़हन में जब बदलने लगता है तो। बदन पर भी उभर आता है मौसम।। सियासत आदमी को खाए लेकिन । सियासत को भी खा जाता है मौसम। मुझे अपना बताता है ये निर्भय उसे कितना सता जाता है मौसम। ©निर्भय चौहान #SAD Dhyaan mira Snehi Uks