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ऐ सनम अगर हम ख़ुदा होते, शायद हम फिर कभी न जुदा ह

ऐ सनम अगर हम ख़ुदा होते, 
शायद हम फिर कभी न जुदा होते l

मैं मनाता तुझे तेरे मत्थे को चूमकर, 
गर कभी तुम हमसे ख़फ़ा होते ।

कोई रास न आया मेरे दिल को,
 सिर्फ तुम ही मुहब्बत करने की वज़ह होते l

मैं जानबूझ कर हज़ारों गलतियां करता, 
गर तुम उन गलतियों की सज़ा होते l

तुझे तक़लीफ़ होती हो हम खुद को भी मार देते, 
तेरे बहते हुए अश्कों की गर हम वज़ह होते l

सुना है दुआ मांगती हो मुझे मौत आये,
मैं खुद खुशी से मरता गर मरने की तुम दवा होते ॥

©Akhil Arya
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