(7) सच्चे प्रेम की आड़ में, लुटा उसका तन - मन है। कीमत बची न उसके मान की, संसार ये कैसा उपवन है? विस्तृत से इस समाज में, क्या यही स्त्री जीवन है? (8) मोल रहा न कुछ जीवन का, दहेज में उसका तोलन है। दी गई आग में झोंक वो, इस तोल में गर हुई अनबन है। विस्तृत से इस समाज में, क्या यही स्त्री जीवन है। Shubham Saini #Woman #Life #Society #poem