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नहीं भीड़ दुनियां की भाती मुझे है, गजब लोग इसमें श

नहीं भीड़ दुनियां की भाती मुझे है, गजब लोग इसमें शामिल हुए हैं।
दगा दे दे न जाने कब ये किसी को,भरोसे के काबिल नही ये हुए हैं।
भरोसे को पल में यहां तोड़े जाते।
शर्तों पे रिश्ते यहां जोड़े जाते।
दौलत की खातिर शोहरत की खातिर,
पीठ में है खंजर यहां घोंपे जाते।
चोला तो पहने शराफत का ये है, मगर कत्ल करने को शामिल हुए हैं।
नहीं भीड़ दुनियां की भाती मुझे है......।
बनें अपने पल में, ये पल में बेगाने,
खुदगर्ज इतना ,न एहसान माने।
हरी डाली इनको,जहां दीख जाए,
फिर गलत क्या सही,यही ये न जाने।
मालिक ने इनको तो इंसा बनाया, हैवान बन के ये शामिल हुए हैं।
नहीं भीड़ दुनियां की भाती मुझे है......।
नहीं प्यास दौलत की ,न शोहरत की मुझको,
जी हजूरी मुझे करनी आती नहीं है।
सौदा करूं अपने ईमान का मैं,
ये तिजारत मेरे मन को भाती नहीं है।
जरा हट के दुनियां है अपनी बनाई, जहां लोग ऐसे न शामिल हुए हैं।
नहीं भीड़ दुनियां की भाती मुझे है.....।

©नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
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