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जख्मों को ज़ख्म देके जगाया न कीजिए जो जल रहा हो उस

जख्मों को ज़ख्म देके जगाया न कीजिए
जो जल रहा हो उसको जलाया न कीजिए
बड़ा अचूक वार होता जब आह निकलती है
मुश्किल पलों में और उलझाया न कीजिए
जख्मों को ज़ख्म......
वक्त बदलता है लड़खड़ाने वाला सम्हलता है 
क्यों भला किसी के मुसीबत पे तू हसता है
बिन मौसम का बारिश बुलाया न कीजिए
जख्मों को ज़ख्म......
देख कौन क्या था आज क्या से क्या हो गया
तू आज भी वहीं खड़ा है सोचो क्या खो गया 
"सूर्य" रो रहा हो उसको रुलाया न कीजिए
जख्मों को ज़ख्म......

©R K Mishra " सूर्य "
  #जख्मों  Suresh Gulia Sethi Ji Ƈђɇҭnᴀ Ðuвєɏ Rama Goswami Ashutosh Mishra