हम कामगार हैं, इसका मतलब क्या हम दर-दर भटके, लॉक-डाऊन में हम कामगार, डरते नहीं रहते थे डट के। मकान मालिकों ने तो हमें, अपने घर से नहीं निकाला, लॉक-डाऊन में उसका भी, निकलने लगा था दिवाला। आँखें लाल कर, मन ही मन अपने गुस्से को संभाला, जब मैंने उससे कहा, यहाँ के मंत्री का मैं हूँ साला। बोला जल्दी से भाड़ा दे, वरना घर खाली कर दे मेरा, रात को ही हमलोग भाग गये, तोड़कर घर का ताला। चल दिए घर की तरफ, पहचान वालों से रहे कट के, चेहरे पर ऐनक लगाया, जुल्फों को कई बार झटके। रास्ते में हम सबों को, प्रशासन ने दिए दो-चार फटके, क्योंकि हम ज्यादा चालाक थे, और चल रहे थे सट के। ना रहना ना ही घर जाना, हम तो जैसे बीच में लटके, कैसे कह दें हम, आसमान से गिरे खजूर पर अटके। 🎀 प्रतियोगिता संख्या- 27 🎀 शीर्षक:- ""हास्य कविता"" 🎀 शब्द सीमा नहीं है। 🎀 इस प्रतियोगिता में आप सभी को इस शीर्षक पर collab करना है।