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kavi manish mann
नेताजी खाकर मालामाल हो गए। भूखे ग़रीब सारे कंकाल हो गए। चिंता नहीं रही ग़रीबों की ज़रा सी। किसानों के लिए ये जंजाल हो गए। 🎀 प्रतियोगिता संख्या- 27 🎀 शीर्षक:- ""हास्य कविता"" 🎀 शब्द सीमा नहीं है। 🎀 इस प्रतियोगिता में आप सभी को इस शीर्षक पर collab करना है।
DR. SANJU TRIPATHI
अदरक का स्वाद मोटू मल जी पहन धोती, कुर्ता और लगा आंखों पर चश्मा। हाथ में लेकर छड़ी, निकले ठाट से करने बाजार की सैर। जेब में थे थोड़े से पैसे, पर समझ रहे थे खुद को धन्ना सेठ। मन ही मन कुछ खाने की सोच कर जीभ ललचा रही थी। सोचा हलवाई से जलेबी लूंगा, तो खाकर मोटा हो जाऊंगा। चलो हरी सब्जियां खाकर ही, अपनी सेहत अच्छी बनाऊंगा। गर्म जलेबी देख कर उनका मन था बहुत ही अधिक ललचाया। फिर मोटू मल जी को बाबा रामदेव का योग, प्रवचन याद आया। जलेबी खाने का विचार त्याग कर, सब्जी लेने को कदम बढ़ाया। देखकर ताजी हरी- हरी लाल सब्जियां, मन तरोताजा हो आया। सब्जी वाले से बोले भैया थोड़ा- थोड़ा झोले में सब कुछ दे दो। टमाटर, खीरा, मूली व गाजर आदि लेकर आए प्रेम से खाया। अदरक भी थी उसमें रखी, पर क्या है उनको समझ ना आया। थोड़ी सी खाई तो बड़ा ही मजा आया, एक बार में पूरी खा ली। मोटू मल को मिला अदरक का स्वाद कूदम कूद मचाई,चिल्लाये। पानी ढूंढा पानी ना मिला, मीठी जलेबी की याद ने बड़ा सताया। धोती, लंगोटी छोड़ भागकर गये जलेबी लेने जलेबी थी खत्म हो गई। बेचारे मोटू मल जी ने दोबारा कभी, अदरक ना खाने का कसम खाई। -"Ek Soch" 🎀 प्रतियोगिता संख्या- 27 🎀 शीर्षक:- ""हास्य कविता"" 🎀 शब्द सीमा नहीं है। 🎀 इस प्रतियोगिता में आप सभी को इस शीर्षक पर collab करना है।
Anil Prasad Sinha 'Madhukar'
हम कामगार हैं, इसका मतलब क्या हम दर-दर भटके, लॉक-डाऊन में हम कामगार, डरते नहीं रहते थे डट के। मकान मालिकों ने तो हमें, अपने घर से नहीं निकाला, लॉक-डाऊन में उसका भी, निकलने लगा था दिवाला। आँखें लाल कर, मन ही मन अपने गुस्से को संभाला, जब मैंने उससे कहा, यहाँ के मंत्री का मैं हूँ साला। बोला जल्दी से भाड़ा दे, वरना घर खाली कर दे मेरा, रात को ही हमलोग भाग गये, तोड़कर घर का ताला। चल दिए घर की तरफ, पहचान वालों से रहे कट के, चेहरे पर ऐनक लगाया, जुल्फों को कई बार झटके। रास्ते में हम सबों को, प्रशासन ने दिए दो-चार फटके, क्योंकि हम ज्यादा चालाक थे, और चल रहे थे सट के। ना रहना ना ही घर जाना, हम तो जैसे बीच में लटके, कैसे कह दें हम, आसमान से गिरे खजूर पर अटके। 🎀 प्रतियोगिता संख्या- 27 🎀 शीर्षक:- ""हास्य कविता"" 🎀 शब्द सीमा नहीं है। 🎀 इस प्रतियोगिता में आप सभी को इस शीर्षक पर collab करना है।
yogesh atmaram ambawale
बड़ी ही अजब गजब यह हास्य कविता हैं, आप जो पढ़ रहे हैं और मैंने लिखी हैं| चोरी करना बुरी बात हैं,इसलिए मैं खुद की लिखता हूँ, पसंद आएगी सभी को इतना ख़याल रखता हूँ| खैर छोड़ो ए मुद्दा,विषय पर आते हैं, लिखी हैं एक हास्य कविता आपको दिखाते हैं| कई दिनों से जो बात मन में छुपा कर रखी थी, अच्छे मौके के तलाश पर उसे बतानी थी| आया मौका अच्छा उसके जन्मदिन का, हाल-ए-दिल बताके इजहार किया अपने प्यार का| चुका मेरा निशाना,गलत मौके पे बात आई, बोली वो इतने दिन सोये थे क्या,आज ही तय हुई मेरी सगाई| 😆😉😂 🎀 प्रतियोगिता संख्या- 27 🎀 शीर्षक:- ""हास्य कविता"" 🎀 शब्द सीमा नहीं है। 🎀 इस प्रतियोगिता में आप सभी को इस शीर्षक पर collab करना है।
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