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उम्मीद सरकारे बनती और बिगड़ती है जनता को बडे बडे वा

उम्मीद
सरकारे बनती और बिगड़ती है
जनता को बडे बडे वायदे देती है।
कुछ मजबूरी में पूरे करती है,
कुछ वादों को वादा ही रहने देती है।

भृष्ट व्यवस्था के आगे जन-जन की
उम्मीदे दम तोड़ देती है।
लेकिन फिर भी सत्ता से ,सुधार की
आशा करती है।

यह क्रम वर्षो से चल रहा है,
हर सत्ताधारी भृष्ट व्यवस्था के अंत का
वादा दोहरा रहा है।

मगर अफसोस,
अपने साथियों और सहयोगियों के
भृष्ट चरित्र को नजरअंदाज कर रहा है।
 

उम्मीद पर ही तो जिंदा है
जो तिल तिल मरने को हैं।

आंधियो के बीच दीप
कुछ जलने को है।।

लेकिन यहॉ ,हर उम्मीद टूटती है
आंधियो के आगे दिए की लौ
बार बार बुझती है।।

हम कहा, किधर जा रहे पता कहां है
राजनीति के रावणो को चिंता कहां है।

चन्द्रकान्त दुबे

©Chandrakant DUbey #कविता 
उम्मीद
सरकारे बनती और बिगड़ती है
जनता को बडे बडे वायदे देती है।
कुछ मजबूरी में पूरे करती है,
कुछ वादों को वादा ही रहने देती है।

भृष्ट व्यवस्था के आगे जन-जन की
उम्मीदे दम तोड़ देती है।
लेकिन फिर भी सत्ता से ,सुधार की
आशा करती है।

यह क्रम वर्षो से चल रहा है,
हर सत्ताधारी भृष्ट व्यवस्था के अंत का
वादा दोहरा रहा है।

मगर अफसोस,
अपने साथियों और सहयोगियों के
भृष्ट चरित्र को नजरअंदाज कर रहा है।
 

उम्मीद पर ही तो जिंदा है
जो तिल तिल मरने को हैं।

आंधियो के बीच दीप
कुछ जलने को है।।

लेकिन यहॉ ,हर उम्मीद टूटती है
आंधियो के आगे दिए की लौ
बार बार बुझती है।।

हम कहा, किधर जा रहे पता कहां है
राजनीति के रावणो को चिंता कहां है।

चन्द्रकान्त दुबे

©Chandrakant DUbey #कविता