हम दोनो को एक दूसरे की ऐसी लत लगी है न मैं सोया हूं कब से,जाने वो कब से जगी है वो कहती है इश्क़ है तो वक़्त साथ बढ़ जाएगा सब्र रखों ,ये कौन सी आग है जो घर मे लगी है डूब के रह गयी उसी में, जो उसने सदाये दी एक दरिया ने कहा था उसे भी प्यास लगी है सोचा था तुमको गले लगा कर मिलेगा सकूँ वस्ल से बेचैनी बढ़ गयी ,कैसी तलब लगी है मैं सो कर उठता हूँ तो तुमको ही देखता हूं घर की दर ओ दीवार पे तेरी तस्वीर लगी है माना कि शहर अलग है और रास्ते भी जुदा है प्यार वो प्यास है जो कब कुआं देख के लगी है रमज़ान दसवां दिन #रमज़ान_कोराकाग़ज़