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ashutosh anjan
🔶खुशियों की बरसात🔶 ज़िंदगी क़दम क़दम पर और दुश्वार होती जा रही है, अपनो से बिछड़ जाने के लिए तैयार होती जा रही है। न इश्क़ का सावन आया न खुशियों की बरसात हुई, साँसों के दरमियाँ देखों अब दीवार होती जा रही है। ख़ुश-रंग मौसम गुलज़ार समां अब कल की बात है, हर चौराहा हर गली अब गुनहगार होती जा रही है। ग़मो से तो ऐसा रिश्ता सा बनकर रह गया है 'अंजान', रुख़्सती देते देते मेरी रूह अब बीमार होती जा रही है। #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #रमज़ान_कोराकाग़ज़ #kkr2021 #kkख़ुशियोंकीबरसात #yqbaba #yourquotedidi #yqdidi
ashutosh anjan
स्याह रातों से जानें क्यों अब बंदगी होने लगी है, लब ख़ामोश है फिर भी अब गुफ़्तगू होने लगी है। आईनें में देख लिया है जिस दिन से चेहरा उसका, जेठ की दोपहरी में अब बाद-ए-सबा बहने लगी है। जिस दिन से बरसी है तेरी इनायत अब्र बनकर मुझ पर, दुनिया तबसे मुझें मोहब्बत का देवता कहने लगी है। रोज़ -रोज़ नई -नई ख़्वाहिशें ज़हन क्यों बढ़ती जाती है, भीड़ इतनी कि दिल के कूचें में घुटन सी होने लगी है। दिल आज़ाद है लेकिन धड़कन तेरी मुट्ठी में क़ैद है, रहमतों की रात में रूह बदन छोड़ जाने को कहने लगी है। मेरी मोहब्बत का असर पानी जैसा हो गया है 'अंजान', रंगीनियाँ छाई है ज़हाँ में मग़र ज़िंदगी बेरंग होनें लगी है। (रहमतों की रात) #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #रमज़ान_कोराकाग़ज़ #kkr2021 #kkरहमतोंकीरात #yqdidi #yqbaba
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जंगल के जंगल मकान हुए जाते है, एक एक करके शहर वीरान हुए जाते है। हम उनसे जख्मों का इज़हार कैसे करते, जो मेरे तेज़ साँसों से परेशान हुए जाते है। रेत की सीपियां मिलने लगी है पानी में, क्या दरिया भी अब रेगिस्तान हुए जाते है। चलते चलते गाँव से शहर आ गए है हम, रौशन बहुत है फिर भी बयाबान हुए जाते है। तिश्नगी फ़ैली है इस कदर ज़माने में अब, आँखें बंद करके अंज़ाम से अंजान हुए जाते है। चलते चलते(ग़ज़ल) #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #रमज़ान_कोराकाग़ज़ #kkr2021 #kkचलतेचलते #yqdidi
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ज़हान के रंगमंच में हर आदमी एक किरदार है, गफ़लत न पालें कि हर कोई आपका तरफ़दार है। कभी नज़रों का बोझ तो कभी दिल पर बोझ है, कहने को खाली है फिर भी जज़्बातों का बाजार है। 'पैग़ाम-ए-इश्क़ न सही ख़्वाबो में गुफ़्तगू हो जाएगी, लेकिन इक नींद है जो मेरे ख़्वाबो की पहरेदार है। मेरा मन बहुत बेचैन है जरूर कुछ छूटा है 'अंजान', चौकठ ख़ाली खिड़की सूनी और चुपचाप दीवार है। इश्क़ का पैग़ाम (ग़ज़ल) #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #रमज़ान_कोराकाग़ज़ #kkr2021 #kkइश्क़कापैग़ाम #yqdidi #yqbaba
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रीति-रिवाजों की बेड़ियों में मचल रहा हर कोई, मंज़िल पता नही मग़र सफ़र में चल रहा हर कोई। ज़िंदा रहने की ख़ातिर इंसानियत खोते जा रहे हम, हर धड़ गिरेगा लेकिन वहम है संभल रहा हर कोई। हर इंसान ख़्वाहिशों का व्यापार करता जा रहा है, ख़ामोशी की तलब में साँसों का खलल रहा कोई। हर पल ये 'दुनिया' मेरे सब्र को परखती रही है, इम्तिहान में मुझें छोड़कर सफ़ल रहा है हर कोई। ये मौसम ये सुबह ये हवा बातें करने लगें है 'अंजान', मेरी ज़िंदगी जीने के मायनों को बदल रहा हर कोई। दुनिया (ग़ज़ल) #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #रमज़ान_कोराकाग़ज़ #kkr2021 #kkदुनिया #yqbaba #yqdidi
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अक्सर सुना करता हूँ दौलत की ताकत के अनकहे किस्से मगर है कुछ प्रश्न अनुत्तरित क्या ख़रीद सकती है दौलत चंद सांसों को भी मोहब्बत किस बाज़ार में बिकती है भला, दोस्ती और निष्ठा को तौल पाएंगे कागज़ के टुकड़े से जब जीवन मरण सुख दुःख प्रेम सच्ची निष्ठा का क्या है कोई मोल भला क्या अर्थ इस दौलत की ताक़त का है निरर्थक!अगर समझ गए तो! दौलत की ताकत(कविता) #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #yqdidi #kkr2021 #रमज़ान_कोराकाग़ज़ #kkदौलतकीताक़त #yqbaba #आशुतोष_अंजान
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नभ के आलिंगन में लिपटा वो अपना सा लगता है इक सन्नाटा उधर भी है तो ख़ामोश मैं भी हूँ पूरा मैं भी नही तो अधूरा वो भी है जलते दोनों है संभवतः पश्चाताप की धवल अग्नि में लोग समझतें है रौशन हमें हर रात जगता वो भी है तो रतजगा मैं भी हूँ गर वो अब्र का चांद ठहरा तो मैं भी ज़मीं का सहरा हूँ। एक दूसरे के सुख दुःख के साथी दोनों अधूरे है, मैं और चाँद! सुख दुःख के साथी ('मैं और चाँद') (कविता) #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #रमज़ान_कोराकाग़ज़ #kkr2021 #kkसुखदुखकेसाथी #yqbaba #yqdidi
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ख़्वाबों की ज़ुस्तज़ू है आँखे बेदार होती जा रही है, साँसे बंद नही लेकिन दुश्वार होती जा रही है। ख़्वाहिशों का भार जैसे कंधों पर बढ़ता गया, दर्द नही है लेकिन ज़िंदगी कटार होती जा रही है। यक़ीनन मेरी जिंदगी एक खुली क़िताब जैसी है, तभी मेरी मंज़िल हफ़्ते का इतवार होती जा रही है। तेरे सवालों का शोर इस क़दर फैला है मेरे ज़हन में, मेरी आँखें तेरे दीदार की तलबगार होती जा रही है। अब तो दरख्तों पर भी नए नए फूल उग आए है, एक उम्मीद है जो टूटकर बेज़ार होती जा रही है। मरने के बाद भी ज़िंदगी खबरों में रहती है 'अंजान', तभी ज़िंदगी रोज़ नया अख़बार होती जा रही है। मरने के बाद (ग़ज़ल) बेदार- चौकन्ना बेज़ार- खिन्न, अप्रसन्न #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #रमज़ान_कोराकाग़ज़ #kkr2021
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अतिथि सत्कार (लघु कथा के रूप में अनुशीर्षक 👇में) अतिथि सत्कार सेवा भारतीय संस्कृति का परम कल्याणकारी व्रत है। शास्त्रों में वर्णित है। मातृ देवो भव ! पितृ देवो भव ! अतिथि देवो भव ! आचार्य देवो भव ! अतिथि भगवान का स्वरूप है। इसीलिए कहा भी गया है- ना जाने किस भेष में मिल जाए भगवान। यहां महाभारत में वर्णित एक कबूतर के अतिथि सत्कार सेवा व्रत का आख्यान प्रस्तुत है, जिसमें उस कबूतर ने अतिथि के भोजन के लिए अग्नि में अपनी ही आहुति दे दी। किसी बड़े जंगल में दुष्ट स्वभाव वाला एक बहेलिया रहता था। वह प्रतिदिन जाल लेकर वन में जाता और परिवार के पालन पोषण के
अतिथि सत्कार सेवा भारतीय संस्कृति का परम कल्याणकारी व्रत है। शास्त्रों में वर्णित है। मातृ देवो भव ! पितृ देवो भव ! अतिथि देवो भव ! आचार्य देवो भव ! अतिथि भगवान का स्वरूप है। इसीलिए कहा भी गया है- ना जाने किस भेष में मिल जाए भगवान। यहां महाभारत में वर्णित एक कबूतर के अतिथि सत्कार सेवा व्रत का आख्यान प्रस्तुत है, जिसमें उस कबूतर ने अतिथि के भोजन के लिए अग्नि में अपनी ही आहुति दे दी। किसी बड़े जंगल में दुष्ट स्वभाव वाला एक बहेलिया रहता था। वह प्रतिदिन जाल लेकर वन में जाता और परिवार के पालन पोषण के
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जब पूछ बैठता है कोई हाल मेरा सहसा सोच में डूब कर मैं सागर के तल में चला जाया करता हूँ सोचकर इतना ही कह पाता हूँ कि अगर ख़ुद का ठीक होना ही है तो हर घड़ी तो मैं ठीक रहता हूँ! लेकिन खुशियों के दरवाज़े बंद हो जैसे ईश्वर भी सम्भवतः अवकाश पर है! कोई अपना,अपनों का अपना कई वट वृक्ष गिरकर धराशाई होते जाते है तो नई कोपलें उग आने से पहले ही टूट गई इतिहास बनने से पहले ही अतीत हो गया! कर पाएगा क्या कोई इनकी भरपाई! जवाब क्या दूँ अब जब बचा न हो कुछ हो सकता है एक दिन सब ठीक हो जाएगा लेकिन तैमूर और नादिरशाह के हमलों के बाद उजड़ी दिल्ली जैसी ही कोई तस्वीर वीभत्स भयावह और बिना अपनों के जीना ही जीना नही होगा तब!! खुशियों का दरवाज़ा(कविता) जब पूछ बैठता है कोई हाल मेरा सहसा सोच में डूब कर मैं सागर के तल में चला जाया करता हूँ सोचकर इतना ही कह पाता हूँ कि अगर ख़ुद का ठीक होना ही है तो हर घड़ी तो मैं ठीक रहता हूँ! लेकिन खुशियों के दरवाज़े बंद हो जैसे
खुशियों का दरवाज़ा(कविता) जब पूछ बैठता है कोई हाल मेरा सहसा सोच में डूब कर मैं सागर के तल में चला जाया करता हूँ सोचकर इतना ही कह पाता हूँ कि अगर ख़ुद का ठीक होना ही है तो हर घड़ी तो मैं ठीक रहता हूँ! लेकिन खुशियों के दरवाज़े बंद हो जैसे
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