सिर ढककर कोसती जाए खुले सिर पर पूजती जाए इन पंक्तियों से यही अर्थ लगाया जा सकता है कि किसी भी व्यक्ति का आदर करना व्यक्ति के संस्कारों और दिल के भावों पर निर्भर करता है ना कि व्यक्ति की वेशभूषा पर।
व्यक्ति के संस्कार ही व्यक्ति को दूसरों का आदर करने के लिए प्रेरित करते हैं यदि व्यक्ति में संस्कार नहीं है तो वह दूसरों की ना तो भावनाओं का आदर करेगा और ना ही व्यक्ति का। किसी भी व्यक्ति के पहनावे से उस व्यक्ति के गुण और संस्कारों पर उंगली नहीं उठानी चाहिए।
मेरे अनुसार आदर व्यक्ति के संस्कारों में निहित होता है यदि व्यक्ति में संस्कार है तो उसकी नजरों में आदर का भाव स्वयं ही दिखाई पड़ने लगता है परंतु यदि उस व्यक्ति में कोई संस्कार नहीं है तो वह नजरें झुका कर भी खड़ा होगा तब भी उसके चेहरे के भावों से उसके दिल की निरादर की भावना का पता चल जाएगा।
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