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“ श्रृंगार ” ( अनुशीर्षक में पढ़ें ) हर तबके की स

“  श्रृंगार  ”
( अनुशीर्षक में पढ़ें ) हर तबके की स्त्रियाँ
हर रोज़ ही जाती हैं
काम पर बिन थके
बेझिझक बगैर छुट्टी 
अपनी ही
चाहरदीवारी के ही अंदर

रोज़ उठ कर
“  श्रृंगार  ”
( अनुशीर्षक में पढ़ें ) हर तबके की स्त्रियाँ
हर रोज़ ही जाती हैं
काम पर बिन थके
बेझिझक बगैर छुट्टी 
अपनी ही
चाहरदीवारी के ही अंदर

रोज़ उठ कर