“ श्रृंगार ” ( अनुशीर्षक में पढ़ें ) हर तबके की स्त्रियाँ हर रोज़ ही जाती हैं काम पर बिन थके बेझिझक बगैर छुट्टी अपनी ही चाहरदीवारी के ही अंदर रोज़ उठ कर