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मंथन (दोहे) मंथन मैं जब भी करूँ, आते यही विचार। क

मंथन (दोहे)

मंथन मैं जब भी करूँ, आते यही विचार।
किस पर अब विश्वास हो, किससे हो उद्गार।।

मंथन नित जो भी करे, होता नहीं बवाल।
कहते हैं सज्जन सभी, रहता नहीं मलाल।।

मंथन से ही सूझती, आगे की है राह।
मंजिल भी मिलती वहीं, होती है जब चाह।।

मंथन जो न कभी करे, करता वह नुकसान।
हो अपयश तब हर तरफ, खोता भी सम्मान।।

बिन मंथन के कुछ नहीं, समझ सके इंसान।
यही बताने के लिए, उतरे थे भगवान।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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