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विचलित मन की परतों में दबी जीवन की छोटी बड़ी खुशि

विचलित मन की परतों में दबी जीवन की छोटी बड़ी 
खुशियों की लहरें, जो कभी पूरे चर्म पर हिलोरें मारती थी,,
 जो कभी पूरे जोर शोर उत्कृष्ट के साथ उठा पटक करती थी,,
जाने क्यों जीवन की आपाधापी में,
दुनिया की,,समाज की ,, कपटी, पापी, निर्दयी, 
जलवायु में आज,, दूषित हो चुकी हैं,, 
उनके इंसानियत रूपी वातावरण की नष्टता, ओर उसमे प्रदूषण से अपने अस्तित्व की समाप्ति के चरम पर है,,,.....

©Rakesh frnds4ever
  #समाज_और_संस्कृति 
विचलित #मन  की परतों में दबी #जीवन  की छोटी बड़ी 
खुशियों की लहरें, जो कभी पूरे चर्म पर हिलोरें मारती थी,,
 जो कभी पूरे जोर शोर #उत्कृष्ट  के साथ उठा पटक करती थी,,
जाने क्यों जीवन की #आपाधापी  में,
दुनिया की,,समाज की ,, कपटी, #पापी , निर्दयी, 
जलवायु में आज,, दूषित हो चुकी हैं,, 
उनके #इंसानियत  रूपी #वातावरण  की नष्टता, ओर उसमे #प्रदूषण  से अपने अस्तित्व की समाप्ति के चरम पर है,,,.....

#समाज_और_संस्कृति विचलित #मन की परतों में दबी #जीवन की छोटी बड़ी खुशियों की लहरें, जो कभी पूरे चर्म पर हिलोरें मारती थी,, जो कभी पूरे जोर शोर #उत्कृष्ट के साथ उठा पटक करती थी,, जाने क्यों जीवन की #आपाधापी में, दुनिया की,,समाज की ,, कपटी, #पापी , निर्दयी, जलवायु में आज,, दूषित हो चुकी हैं,, उनके #इंसानियत रूपी #वातावरण की नष्टता, ओर उसमे #प्रदूषण से अपने अस्तित्व की समाप्ति के चरम पर है,,,..... #rakeshfrnds4ever

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