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हम ,दर्द बांटने निकले थे रास्ते में किरायेदार मिल

हम ,दर्द बांटने निकले थे
रास्ते में किरायेदार मिल गये ।

हमदर्द मिला ना कोई 
हम खुद ही तलबगार बन गये ।

सोचा कह दूं अपनों से कि भारी है दिल मेरा 
पर कदम बढ़ाए तो आंसू छलक पड़े ।
याद दिलाया खुदको कि दर्द तो है उन्हें भी
अपना रोना रोया तो कष्ट होगा उन्हें भी,
अब कदमों को पीछे कर ले तू
होठों पर हंसी और दिल में दर्द दफन कर ले तू॥

©Rakhi Jha
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