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बहा पसीना अपना, बनाई कितनों की मीनारें मैंने, फिर

बहा पसीना अपना, बनाई  कितनों की मीनारें मैंने,
फिर भी पाई बदले में, दुत्कारें, दुत्कारें, दुत्कारें मैंने,
जब  भर न सका, मेरे दर्द को बाज़ारू करती दरारें,
तो हिम्मत कर तोड़ दी, पक्की दिखती दीवारें  मैंने।

- #अमृत
(अमित बिल्लौरे सोहागपुर नर्मदापुरम्)

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