इलाहाबाद न्यायालय ने सुनाया एक फरमान। सुन कर उस फरमान को हो गया मैं हैरान। हो गया मैं हैरान तभी बात ये दिल से निकली। लगता है न्यायालय की गलती से जुबान है फिसली। जान बूझकर न्याय कर्ता अपराधी को नहीं बचाएंगे। ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि न्यायाधीश गलत फैसला सुनाएंगे। पर सच तो यही है न्यायालय ने मेरा भरम तोड़ दिया। दंगाइयों उपद्रवियों को सड़क पर खुल्ला छोड़ दिया। इलाहाबाद न्यायालय ने अपना फैसला सुना दिया। उत्तर प्रदेश सरकार को अपाहिज बना दिया। अपाहिज सरकार अब और भला क्या करतीं। उच्च न्यायालय में लगा दी जाकर अपनी अर्जी। अब देखना है उच्च न्यायालय क्या फैसला सुनाएगा। दोषियों को सजा मिलेगी या फिर दोषी बच जाएगा। उच्च न्यायालय के फैसले का इन्तजार कर रहा था। सरकार सहीं है या गलत मन में विचार कर रहा था। खैर इन्तज़ार खत्म हुआ आज सुनवाई का दिन आया। पर उच्च न्यायालय भी इस मुकदमे पर कुछ न कह पाया। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने वरिष्ठ न्यायाधीश से लगाई गुहार। इस मुकदमे को सुनने के लिए तीन न्यायाधीशों की बेंच करों तैयार। बेंच करों तैयार ये मेरे अकेले के बस की बात नहीं। मैं दंगाइयों को अपराधी ठहराऊं ऐसी मेरी औकात नहीं। ये भारत है यहाँ दंगा करना मौलिक अधिकार होता है। बसे घर दुकान जलाना भी कोई अपराध होता है। दस बीस दंगाई बेशक पूरा देश जला डालें। सरकार की क्या मजाल भला उनपर बुरी नजर डालें। यदि दंगाइयों की पहचान हुई तो वो दंगा कर न पायेगा। फिर तुम्हीं बताओ राजनीति के चलतें देश कौन जलायेगा। बाबा साहब ने संविधान में सबको अधिकार दिया है। पोस्टर लगा कर उत्तर प्रदेश सरकार ने बेकार किया है। इसलिए मैं इलाहाबाद न्यायालय के फैसले पर रोक नहीं लगाऊंगा। अब इस मुकदमें का फैसला तीन न्यायाधीशों के साथ सुनाऊंगा। अजय कुमार #अजयकुमारव्दिवेदी सुनाया एक फरमान