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ग़ज़ल :- पीर दिल की किस तरह कहती यहाँ । क्या तुम्हा

ग़ज़ल :-

पीर दिल की किस तरह कहती यहाँ ।
क्या तुम्हारे पाँव में गिरती यहाँ ।।१

काश पत्थर की बनी होती यहाँ ।
छ़ोड फिर मैं लाल को जाती यहाँ ।।२

आप समझे ही नहीं औरत कभी ।
बस समझते आप हो दासी यहाँ ।।३

नीचता की हद सभी अब पार हैं ।
क्या तुम्हें अब शर्म भी आती यहाँ ।।४

मैं सभी से माँगती हूँ ज़िन्दगी ।
काश मुझको मौत मिल जाती यहाँ ।।५

आप जो करते वफ़ा हमसे कभी ।
क्यों न बोलो मैं भला रुकती यहाँ ।।६

है दिखावा नारियों का ये जगत ।
रूप ढ़लते सुख कहाँ पाती यहाँ ।।७

हो गये हैवान जबसे मर्द है ।
बेटियाँ ही देखता जलती यहाँ ।।८

चन्द साँसें और बाकी है प्रखर ।
क्यों तुम्हारे प्यार में रोती यहाँ ।।९

२९/०१/२०२३   -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-

पीर दिल की किस तरह कहती यहाँ ।
क्या तुम्हारे पाँव में गिरती यहाँ ।।१

काश पत्थर की बनी होती यहाँ ।
छ़ोड फिर मैं लाल को जाती यहाँ ।।२
ग़ज़ल :-

पीर दिल की किस तरह कहती यहाँ ।
क्या तुम्हारे पाँव में गिरती यहाँ ।।१

काश पत्थर की बनी होती यहाँ ।
छ़ोड फिर मैं लाल को जाती यहाँ ।।२

आप समझे ही नहीं औरत कभी ।
बस समझते आप हो दासी यहाँ ।।३

नीचता की हद सभी अब पार हैं ।
क्या तुम्हें अब शर्म भी आती यहाँ ।।४

मैं सभी से माँगती हूँ ज़िन्दगी ।
काश मुझको मौत मिल जाती यहाँ ।।५

आप जो करते वफ़ा हमसे कभी ।
क्यों न बोलो मैं भला रुकती यहाँ ।।६

है दिखावा नारियों का ये जगत ।
रूप ढ़लते सुख कहाँ पाती यहाँ ।।७

हो गये हैवान जबसे मर्द है ।
बेटियाँ ही देखता जलती यहाँ ।।८

चन्द साँसें और बाकी है प्रखर ।
क्यों तुम्हारे प्यार में रोती यहाँ ।।९

२९/०१/२०२३   -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-

पीर दिल की किस तरह कहती यहाँ ।
क्या तुम्हारे पाँव में गिरती यहाँ ।।१

काश पत्थर की बनी होती यहाँ ।
छ़ोड फिर मैं लाल को जाती यहाँ ।।२

ग़ज़ल :- पीर दिल की किस तरह कहती यहाँ । क्या तुम्हारे पाँव में गिरती यहाँ ।।१ काश पत्थर की बनी होती यहाँ । छ़ोड फिर मैं लाल को जाती यहाँ ।।२ #शायरी