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चाँद ,रात ,चराग़ सब कहाँ मय्यसर है मुझे, दुआ ,दवा ,

चाँद ,रात ,चराग़ सब कहाँ मय्यसर है मुझे,
दुआ ,दवा ,हक़ीम ,क़रीम सब बेअसर है मुझे;

सुब्ह का नूर, शाम का सुरूर ; सब बेनूर
अब लगता है ये जहां भी मुख़्तसर है मुझे।

©Gaurav Bhatt
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