मैं बुत हुं मिट्टी का, ना मेरा कोई मोल। ना रूह मुझ में है, ना मेरा कोई रोल। रूह आऐ क़रीब तो, मन मेरा खिल जाता था। चाह कर बोल ना पाऊं संगरूरवी, दिमाग हिल जाता था। ©Sarbjit sangrurvi मैं बुत हुं मिट्टी का, ना मेरा कोई मोल। ना रूह मुझ में है, ना मेरा कोई रोल। रूह आऐ क़रीब तो, मन मेरा खिल जाता था। चाह कर बोल ना पाऊं संगरूरवी,