स्मृति की गीतांजलि गीत [4] अपने ही विचारों की श्रृंखला से है मुझे पता चला तुम ही परम सत्य हो जिसने मेरे ह्रदय में सुबुद्धि को जागृत किया, प्रेम के अश्रुधार से सकल कलख को बहा और अंतर्मन में प्रणय -पुष्प को खिला भाव की गंगा बहा, स्व ह्रदय में तव आलय बना दिया तुम मुझमें हो निहित यह कर्म से ही होगा विदित मनसा, वाचा, कर्मणा से न कभी होऊँ मैं च्युत मुक्ति का तुम द्वार हो,तुम अक्षर, तुम अच्युत | ©स्मृति.... Monika #स्मृति की गीतांजलि #गीत (4)