रंगो रस की हवस और बस मसल्लहा दस्तरस और बस । सब तमाशा ए कुन खत्म शुद, कह दिया उसने बस और बस । उस मुसव्विर का हर सहकार, 60 65 बरस और बस । यूं बनी है रगे जिस्म की, एक नस टस से मस और बस ।। -- अमर इकबाल ✒️ रंगो रस की हवस और बस मसल्लहा दस्तरस और बस । सब तमाशा ए कुन खत्म शुद, कह दिया उसने बस और बस । उस मुसव्विर का हर सहकार, 60 65 बरस और बस ।