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ज़िन्दगी से शिकायत कैसी भावनाओं का कत्ल कर  उन्हें

ज़िन्दगी से शिकायत कैसी

भावनाओं का कत्ल कर 
उन्हें कब्र में दफ्न करना 
उतना कठिन भी नहीं !
हाँ कभी-कभी
ज़िंदा भी हो जाती है।
अरे तो  क्या हुआ !
फिर से दफ्न हो ही जाती है !
ओफ्फो..
कौन सी ज़िन्दगी लम्बी है 
छोटी सी तो बाकी है
नम आँखें छुपाकर 
मुस्कुराहट लबों पे काफ़ी है।
ख़ामोशी भी तो है न अच्छी दोस्त,
होठो पे खूबसूरत साथी है।
कुछ न कहो चुप ही रहो,
धड़कने इस बात पे राज़ी है।
फिर ज़िन्दगी से शिकायत कैसी?
छोड़ो न बस गुज़र ही जाती है।

©दीपा साहू "प्रकृति"
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ज़िन्दगी से शिकायत कैसी

भावनाओं का कत्ल कर 
उन्हें कब्र में दफ्न करना 
उतना कठिन भी नहीं !
हाँ कभी-कभी

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