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पंचतत्व का मिला शरीरा,माया नचा रही है। भरमा रही है

पंचतत्व का मिला शरीरा,माया नचा रही है।
भरमा रही है कैसे सबको, जलवा दिखा रही है।।
पहचान तेरी क्या है,कुछ सोचकर तो देख बंदे।
भोगी शरीर में फँसाकर, सबको मिटा रही है।।

©Shubham Bhardwaj
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