आखिर तुमने अपने ह्रदय क़ो इतनी विशालता क्यों दे दी तुम पूरे ज़माने क़ो अपने भीतर समेट लेना चाहते हो क्या लेकिन मुझसे तुमने इतनी दूरी क्यों बना रखी है इसमें भी तुम्हे कोई अपना नफा नज़र आ रहा है क्या जिन्हे तुम ढूंढ रहे वे तो सफऱ पर निकल चुके है उनकी कमी तुम्हे रुलाने लगी है क्या तेरी ख्वाहिशों के बादल अभी भी नजर आरहे तेरे दिल के आसमान पर कही वे बादल बिना बरसे. ही गुजर तो नही गए क्या तेरी गली से गुजरने में मुझे अभी भी डर लगता है तूने अपनी गली में फैली हुई वहशत क़ो काबू कर लिया है क्या ज़ब तू किसी से खफा नही तो तुझसे खफा कौन होगा तेरे चेहरे पर आई इस उदासी क़ो कोई समझ नही पा रहा है क्या ©Parasram Arora विशालता....