ज़िंदगी का सफ़र, ज़िंदगी भर मुझे, इक नई ज़िंदगी से मिलाता रहा, मैं जिधर भी गया रास्ता वो मुझे, मेरे मुँह पर ही मुझको चिढ़ाता रहा। थे फ़रेबी जहाँ रास्ते में मिले, शख़्स ऐसा वहाँ एक मुझे मिल गया, जब अँधेरा हुआ,रौशनी के लिए,साथ तारे सा वो टिमटिमाता रहा। सर्दियाँ इश्क़ की कैसे भूले 'डिअर', उसने सीने से मुझको लगाया था जब, सर पकड़ के मेरा वो दबाती रही, मैं भी लिपटा सा चौ कटकटाता रहा। चाँद मेरा मुझे यूँ मुक़म्मल हुआ, रात पूनम में वो साथ बैठी रही, वो मुझे देखकर और जवां हो गयी, रातभर चाँदनी मैं नहाता रहा। हम ज़माने की ख़ातिर जुदा हो रहे, है जुदाई का अपना अलग ही मज़ा, इस तरह हौसला वो बढ़ाती रही, पीठ उसकी भी मैं थपथपाता रहा। हम मिले थे जहाँ, अब उसी मोड़ पर, कोई राधा भटकती रही उम्रभर, क़िस्मतों में न थी आशिक़ी जब 'डिअर', दूर कान्हा भी बंसी बजाता रहा। #dearsdare #ग़ज़ल #gazal #ghazal #love #life #poetry #newgazal