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ज़िक्र ------ यूँ तो हर शक़्स गुफ़्तगू करता है सब

ज़िक्र
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यूँ तो हर शक़्स गुफ़्तगू करता है सबको अपने मतलब से फ़र्क़ पड़ता है

मैं फ़रिश्ता नहीं मगर दिल से उनका ज़िक़, उन्हीं से करता हूँ उनसे सँवरेगा आनेवाले कल का समाज ये सच मैं उनसे कहता हूँ

जो लाज-शर्म सब लूट खाए हैं वह क्या खाक़, उनकी आबरू महफूज़ रख पाएंगे जिन्हें हिफ़ाज़त की फ़िक्र नहीं वह क्या खाक़, माँ-बहनों और बेटियों से नज़रें मिलाएंगे

हुस्न की तारीफ़ करूँ या हुनर को बयां, कुदरत ने नायाब नेमतों से उन्हें बक़्शा है इत्तेफ़ाक़ ना ही किस्मत, जो कुछ भी कमाया है ये उनके ख़ुद को पेश करने का करिश्मा है

उन्हें चाहनेवालों का दिल उनका घर है और वह वहां रहती है दुनिया जले या जल्वों पर फ़िदा हो चले वह, अपने चाहनेवालों की जाँ बानी रहती है

मनीष राज

©Manish Raaj
  #ज़िक्र