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कभी कभी सोचती हूँ ,कहाँ जा रहा है हमारा समाज। दिल

कभी कभी सोचती हूँ ,कहाँ जा रहा है हमारा समाज।
दिल  खाली  हो  रहें  हैं ,और  वृद्धाश्रम  भर   रहे  हैं।

क्या  रही  क़द्र  रिश्तो  की ,महज़  कागजी  हो रहे हैं।
आधुनिकता की दौड़ में हम ,किस संस्कृति को ढो रहे हैं।

जिन  उँगलियों  को  थामकर  हमने  चलना   था  सीखा।
उनके काँपते हाथो में हम ,आधुनिकता के काँटे बो रहें हैं।

ये कैसी पश्चिमी बयार है ,जिसमे हम बहते ही जा रहें हैं।
अपने घर की सघन छाया को,वृद्धाश्रम की राह दिखा रहें हैं।

सोचो कैसा होगा हमारा आने वाला कल,जिसकी हमने नीव रखी है।
बच्चे हमारा ही अनुसरण करेंगे,हमने अपने बुजुर्गों के साथ किया ।
वो अपने बुजुर्गों के साथ करेंगे।।

©poonam atrey
  #वृद्धआश्रम  ram singh yadav Richa Mishra kukku Deep  Rama Goswami प्रज्ञा Anshu writer दिनेश कुशभुवनपुरी Lalit Saxena  Poonam Suyal Suhana parvin Payal Das sana naaz Ashutosh Mishra  sukoon Navash2411 भारत सोनी _इलेक्ट्रिशियन शीतल चौधरी(मेरे शब्द संकलन ) Kamlesh Kandpal  Sethi Ji Balwinder Pal Mili Saha अब्र (Abr) खामोशी और दस्तक  पथिक.. Sita Prasad Badal Singh Kalamgar kumar samir मनोज मानव  R K Mishra " सूर्य " Rakesh Srivastava Anil Ray Bhavana kmishra डॉ मनोज सिंह,बोकारो स्टील सिटी,झारखंड। (कवि,संपादक,अंकशास्त्री,हस्तरेखा विशेषज्ञ 7004349313)  Mahi Maaahi.. Bhavana kmishra Puja Udeshi -hardik Mahajan  Noor Hindustanai Urvashi Kapoor ✍️vishwakarma g Raju ....... Deepti Garg 
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