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वक्त की रफ्तार में खुदको गुजरते देखा है। बचपन को ज

वक्त की रफ्तार में खुदको गुजरते देखा है।
बचपन को जवानी में निखरते देखा है ।।
हाथ नही आता है यह न जाने कैसा खजाना है।
अपना सा लगे है मगर हाथ से बिखरते देखा है।।

©Shubham Bhardwaj
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