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वृक्षारोपण (दोहे) वृक्षारोपण जो किया, मुख पर थी म

वृक्षारोपण (दोहे)

वृक्षारोपण जो किया, मुख पर थी मुस्कान।
हरी भरी जब हो धरा, पक्षी करते गान।।

वृक्षारोपण से मिले, सबको जीवन दान।
प्राण वायु तब प्राप्त हो, इसको दें सम्मान।।

पंथी को छाया मिले, करे फलों का भोग।
होता फिर आराम है, कहते सज्जन लोग।।

सूखे वृक्षों से मिले, लकड़ी का सामान।
जाते-जाते भी दिया, ऐसा कर्म महान।।

वृक्षारोपण जो करें, पड़े नहीं आकाल।
सुख से जीवन बीतता, हो न सकें बेहाल।।

जीवन इनमें भी मिले, जाने सकल जहान।
फिर क्यों काटे वृक्ष को, ये मानव नादान।।

जंगल ही अब खत्म हैं, छूट गया आवास।
क्या करते फिर जीव तब, ग्रामीणों से आस।।

दर-दर वह भटके फिरें, भोजन को लाचार।
पशु-पक्षी भी सोचते, कहाँ मिले आहार।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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