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ये पागल सा मन मेरा न समझता न कुछ सुनता है ये इश्क

ये पागल सा मन मेरा न समझता न कुछ सुनता है
ये इश्क में हैं साहेब, रोता और बिलखता है।
कहीं से करा दे दीदार अब उसका....
ये मिन्नते उस रब से बार बार करता है।
mamtaj priya ✍️✍️✍️

©Mamtaj Priya
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